एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, May 31, 2009
समंदर !!!
ये समंदर बहुत गहरा है...
इस धुरी से उस धुरी तक फैला हुआ...
जमी को काटता...
लोगो को बांटता...
ये समंदर बहुत गहरा है...
लहरे जो उठ उठ कर गिरती हैं...
इसकी मर्जी की जिद्दो-जहद है...
इसके गले पर सिमटा हुआ ये रेत...
कश-म-कश की निशानी है...
और इसके सर पे लगे ये पैने पत्थर...
इसने ख़ुद चुने हैं अपने लिए...
सपनो सी रंगीन मछलियाँ तैरती रहती हैं...
अफसानो से शंख गीले रेत में गुम हैं...
जहाँ तक नीला है उफनता नज़र आता है....
उसके बाद ये थमा थमा सा बहा जाता है ...
जितनी नदियाँ आ कर समा जाती हैं...
उतना इसका मिजाज बदला नज़र आता है...
कहीं काला कहीं लाल सागर है...
कभी खुशनुमा तो कभी दर्द में सिमटा ....
ये सोच का समंदर कितना अजीब है...
भावार्थ
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