जब दीवारें आ कर मिलती है...
तब गाँठ नहीं बनती...
एक कौने की तामीर होती है...
कमरे के गम लिए ये कौने....
अक्सर दिखाई नहीं देते...
जब दर्द आंसू की शक्ल लेना चाहता है ...
तो कौने उनको पनाह देते हैं ...
साजिशों के हमराज हैं ये कौने...
दीवारों की शक्ल बदल सकती है...
मगर इन कौनो की नहीं....
आज जब दीवारे गिरी तो ...
तो बस कौने रह गए...
टूटे रिश्ते से बनी गाँठ की तरह...
भावार्थ...
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