तुझ से मेरी जिंदगी को पाक रूह मिली है...
तुझ से दिल के कौने में खुशी की धुप खिली है...
तुझ से सेहरा की परछाई सुनहरी सी लगे...
तुझसे सावन में ठंडी एक बयार चली है....
तुझसे फिजाओ में अंगडाई आती है...
तुझसे उफक के दामन में बदरी की घटा चली है...
तुझसे समंदर में मौज उफनती है लहर बनकर...
तुझसे पपीहे को प्यास की आस मिली है...
तुझसे सवर कर हिना में सुर्ख रंग आता है...
तुझसे अदाओ को मचलने की अदा मिली है...
तुझसे आयते बनी ताबिजो में बंधी हैं जो...
तुझसे नमाजो को इबादत की जजा मिली है...
तुझसे मेरी साँसों में गर्मी घुलती जाती है...
तुझसे मेरी जिंदगी को पाक रूह मिली है...
भावार्थ...
No comments:
Post a Comment