बीज उजाडे हैं जमीं के सीने से जिन्होंने ...
पातियाँ बो रहे हैं वही पेड़ उगाने के लिए...
शमा बुझ गई उनके बुझाने से आख़िर कर...
अब लौ ढूढ़ते हैं अँधेरा रात का मिटाने के लिए...
मैली गंगा की किनारों से जो लौट आए...
अब ओख बढाये फिरते हैं प्यास बुझाने के लिए...
छोड़ दी दुनिया शोर से बचने की खातिर...
बे-सबब है वो बच्चे की किलकारी पाने के लिए...
तुम लिखते रहो 'भावार्थ' कुछ पाने की न सोचो...
लुट चुके हैं वो जो निकले थे सल्तनत बनाने के लिए...
भावार्थ...
पातियाँ बो रहे हैं वही पेड़ उगाने के लिए...
शमा बुझ गई उनके बुझाने से आख़िर कर...
अब लौ ढूढ़ते हैं अँधेरा रात का मिटाने के लिए...
मैली गंगा की किनारों से जो लौट आए...
अब ओख बढाये फिरते हैं प्यास बुझाने के लिए...
छोड़ दी दुनिया शोर से बचने की खातिर...
बे-सबब है वो बच्चे की किलकारी पाने के लिए...
तुम लिखते रहो 'भावार्थ' कुछ पाने की न सोचो...
लुट चुके हैं वो जो निकले थे सल्तनत बनाने के लिए...
भावार्थ...
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