Sunday, May 10, 2009

मन्नत !!!

खुदा तूने अगर तारा जो बनाया है मुझे...
तो अब कुछ चमकने का हुनर भी दे दे...
लोग जब तेरे सजदे के लिए सर उठाते हैं...
तो मुझे बस बुझा बुझा सा पाते हैं...
तुझसे जो करिश्मे की उम्मीद करते हैं...
मुझमें तेरे बे-असर होने का सबब पाते हैं...
में शर्म से अब रातो को नहीं निकलता...
उफक के कौने में कहीं छुपा रहता हूँ...
तुझसे करोडो की उमीदें बंधी हैं...
में इसीलिए मद्धम सा सुलगता रहता हूँ...
तू शहंशाह है तू गरीब नवाज़ है सबका...
इबादतो में फेलाए हुए तेरे नूर की बूँद ही दे दे ...
में भी जगमगा उठून कुछ एक पल के लिए...
ऐसी तकदीर तू मुझ बे-चिराग को दे दे...
कहीं ऐसा न हो कोई तुझसे आस बाँध ले ...
मैं गिरू और कोई तेरा बंदा मन्नत मांग ले ...

भावार्थ...

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