नाराज ये खाब हैं या तू मेरी जिंदगी...
कुछ तो बता ऐ मेरी अजनबी जिंदगी...
एक खाब था देखा मासूम बचपन का...
माँ से लिपट कर झूठी-मूटी अनबन का...
खिलौनो से फूटती उस मधुर छनछन का...
क्यों अतीम सी लुटी भला मेरी जिंदगी...
नाराज ये खाब है या तू मेरी जिंदगी...
खाब था शयद कुछ कर गुजरने का...
दुनिया के रास्तो पे नई तरह चलने का...
हाथो में लिखी तकदीर बदलने का...
क्यों हार हर बार दी तुने ऐ जिंदगी...
नाराज ये खाब हैं या तू मेरी जिंदगी...
खाब था एक हसीं जा मूरत का साथ मिले...
उसके गेसू उसकी अदा की सौगात मिले...
जवानी के तड़पते सेहरा को बरसात मिले...
क्यों बेवफाई मोहब्बत में भर दी जिंदगी...
नाराज ये खाब हैं या तू मेरी जिंदगी...
खाब था भटकती जिंदगी को सुकून मिले ...
हमसफ़र मिले अगर तो बस तन्हाई मिले...
रानाई में न बहने का कुछ हौसला मिले ...
क्यो दर्द लिखने की तमन्ना दी जिंदगी ...
नाराज ये खाब हैं या तू मेरी जिंदगी...
नाराज ये खाब हैं या तू मेरी जिंदगी...
कुछ तो बता ऐ मेरी अजनबी जिंदगी...
भावार्थ...
1 comment:
achha likhte hain aap..nice poetry
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