Saturday, November 29, 2008

ताज पे कुछ कबूतर !!!




ताज पे कुछ कबूतर आज उड़ने आए...
दहशत में संदेश-ऐ-अमन वो पढने आए...
जिस ताज के सामने चुन्गते हैं दाना जो...
उसकी तामीर को सजदा करने आए...
अरब समंदर जहाँ छूता है शहर को...
जख्मी किनारे को मलहम मलने आए...
संग जिसके साख सा एहसास देते हैं ...
उस इमारत पे सब आंसू बहाने आये...
रहनुमा-ऐ-मुल्क सियासत में गुम रहे...
सबसे पहले शहीदों पे गुल चढाने आए...
कुछ उत्तर-मराठी का भेद करने में गुम रहे ...
वो इबादत-ऐ-जौहर को दिया जलाने आए...
शहर जो जिंदगी के मायने बदल चुका हो ...
जिंदगानी में पहले सा जोश भरने आए...
ताज पे कुछ कबूतर आज उड़ने आए...दशहत में संदेश-ऐ-अमन वो पढने आए...

भावार्थ...

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