मैं जो नहीं हूँ वोह मैं दिखना सीख जाऊं...
बातें झूठी मूटी सी बुनना सीख जाऊं...
सीख जाऊं बेहूदगी पे हसना मुस्कुराना ...
सच को मरोड़ पेश करना सीख जाऊं...
फीकी बातों को दिलचस्प बनाना सीख जाऊं ...
ओछी धुनों को हरपल गुनगुनाना सीख जाऊं...
सीख जाऊं इन बकवासों पे कहकहे लगाना...
दूसरो के गमो पर झूठी आहें भरना सीख जाऊं...
बेढंग तरीको से ख़ुद सवरना सीख जाऊं...
दे कर किसी को वादा मुकरना सीख जाऊं...
सीख जाऊं शतरंज के सभी मोहरे चलना ...
उड़ते हुए पाखी के पर कुतरना सीख जाऊं...
दिल बिना मिलाये गले लगाना सीख जाऊं...
हर बात पे उनकी हाँ कहना सीख जाऊं...
कहते हैं वो सीख जाऊं में दुनिया के तरीके ...
जिंदगी को पल पल मार जीना सीख जाऊं...
भावार्थ...
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