Saturday, November 22, 2008

ठुकरा के पी गया...

गम इसकदर बढे की में घबरा के पी गया...
इस दिल की बेबसी पे घबरा के पी गया...

ठुकरा रहा था मुझे बड़ी बेरुखी से जहाँ...
में आज सब जहाँ को ठुकरा के पी गया...

ये हँसते हुए फूल ये महका हुआ गुलशन...
ये रंग में और ये नूर में डूबी हुई राहें...

ये फूलो का रस पिके मचलते हुए भंवरे...
में दू भी तो दू भी क्या तुम्हे शोख नज़रो...

ले दे कर मेरे पास कुछ आँसू हैं कुछ आहें हैं...

साहिर लुधियानवी...

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