मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
मुझे मेरे रास्ते से गुमराह किया जा रहा है...
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
मुझे हर बात बेखौफ कहने में कैफ मिलता है...
मेरे उसी अंदाज़ पर मुझे शर्मिंदा किया जा रहा है...
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
उनको मालूम है मेरा अंदाज़-ऐ-बयां सबसे जुदा है ...
तो मुझे मेरे हर एक अल्फाज़ पे टोका जा रहा है...
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
मेरे मरासिम ही तो हैं मेरी हस्ती की बुनियाद ...
मेरे हबिबो को एक एक कर के खरीद जा रहा है...
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
हवा रोक दी, धुंद भर दी फलक तक, पर काट दिए...
और मुझे आकाश में उड़ने का फरमान दिया जा रहा ....
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
इन्कलाब के ख्याल तो मेरे जेहेन में रहते हैं...
और मुझे मेरे पहनावे पे तलब किया जा रहा है...
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
वो ख़ुद तो बुन न सके एक ख्याल भी कभी...
और मेरे अफकारो को धुंधला तसव्वुर कहा जा रहा है...
मुझे कुछ इस तरह परेशा किया जा रहा है...
मुझे मेरे रास्ते से गुमराह किया जा रहा है...
भावार्थ...
3 comments:
this is a real inspiring poem ...it made me stronger....
thanks for this wonderful poem it seems as if it has my autobiographical elements..
carry on bhaiya...
Thanks a lot bhabhi...
you are awesome.very pure and raw pain.
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