Friday, November 14, 2008

मन रे तू कहे न धीर धरे !!!

मन रे तू काहे न धीर धरे
ओ निर्मोही मोह न जाने जिनका मोह करे
मन रे तू काहे न धीर धरे

इस
जीवन की चढ़ती ढलती
धुप को किस ने बाँधा
रंग पे किस ने पहरे डाले
रूप को किस ने बाँधा
काहे यह जातां करे
मन रे तू काहे न धीर धरे

उतना
ही उपकार समझ कोई
जितना साथ निभा दे
जनम मरण का मेल है सपना
यह सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे तू काहे न धीर धरे

निर्मोही मोह न जाने जिनका मोह करे
हो मन रे तू काहे न धीर धरे

साहिर लुधियानवी...

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