लहू रिस रिस के गिर रहा है जमी पे फ़िरसे ...
आज फ़िर से खौफ का सन्नाटा आ गया...
कुछ चीखे उन रोंधे हुए गले से फट पड़ी...
मातम मुस्कुराते हुए हर पहलू पे छा गया...
जेहेन का लहू संग बन गया आज फ़िर...
रगों का लहू चढ़ के आंखों में उबल रहा है...
कुछ लहू मोम सा जम गया सड़को पे युही ....
कितना ही लहू लहू बहाने को मचल रहा है....
सिसकियाँ लबो पे गीला एहसास ले आई ...
मौत आख़िर आज भी उतनी ही संजीदा है...
मुरझाये हुए है चेहरे जाने वाली की यादों में...
आँसू का दरिया मौत पर आज भी शर्मिंदा हैं ....
कितने रिश्ते कांच से बिखर गए उस रोज...
ढ़य गए आशियाने के तिनके एक एक कर...
सिमट गए होश-ओ-ख्याल सीले आगोश में...
निशाँ बन गई जीती हकीकत एक एक कर...
हादसे खौफ के बादल हटने नहीं देते जेहेन से...
आंसू बह बह के गिरते हैं सहमी हुई आँखों से...
जलती हुई चिताए रूहे जलती है अपनों की...
तपती रहती हैं जिंदगानियां धधकती राखो से...
तुम मर चुके हो लोग यही एहसास दिलाते हैं...
ये जिद्दी दिल है जो तुमको जिन्दा रखे हुए है...
कान सुनते नहीं ,नज़रे देखती नहीं लोगो को...
तुम और तुम्हारी यादों में ख़ुद को समेटे हुए हैं...
भावार्थ...
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