सुबह की पहले पहर जिंदगी अजीब थी...
फुटपाथ के बिस्तर सिमट रहे थे...
रिक्शे वालो के झुंड बन गए थे...
चाय की दुकाने कुकुरमुत्तो सी हर तरफ़...
कांपते जिस्मो को कुछ बूँद गर्मी दे रही थी...
धूल सडको पे से कौनो पे सिमटी जा रही थी...
चौराहे वीराने में जाग गए...
मुरझाये चेहरे अलाव तापते बैठे थे...
पन्नी पल्स्टिक कूदे के ढेर से उठ चुकी थी ...
अख़बार बांटती सायकिलें एक साथ निकली...
स्याही में लिपटी खबरे ताज़ी ताज़ी थी ...
मजदूरों की टोली फेक्ट्री खुलने के इंतज़ार में...
ठण्ड में बीडी पे बीडी फूँके जा रही थी ...
ढूढ़ वालो की गाड़ी पल पल पे निकलती थी ...
बस यही दुनिया जागी और उनकी सुबह ख़तम हुई...
बाकी दुनिया अभी "गुड मोर्निंग" बोलेगी...
भावार्थ...
1 comment:
subah ki reality ko bahut hi achhe se prastut kiya hai..good one! carry on writing ....
good morning!!:)
Post a Comment