Thursday, November 6, 2008

एक शाम साहिल पे...!!!


लकीरें जो भी मैंने खीची साहिल पे...
मदहोश लहरें हर बार मिटा गई...
में उफनते समंदर को ताकता रहा...
सूरज की गर्मी उसमें पनाह पा गई...
न सुर्ख लाल और न चटक पीला मंजर...
लालिमा हल्दी में लिपटी वहां छा गई...
कुछ तैरते जहाज नजरो से बोझिल हुए...
कश्ती हर एक लौट किनारे पे आ गई...
मछलियाँ खुश हैं जाल सारे घर लौटे गए...
जिंदगी एक और दिनका तोहफा पा गई...
हाथ में हाथ डाले शाम और रात मिले...
जलते हुए दिन को रातकी चांदनी भा गई...
पाखी लौटने लगे अपने घरोंदे को...
मुझको बुलाने भी तन्हाई आ गई...

भावार्थ

1 comment:

Anonymous said...

beautiful!!its scenic beauty filled with bright colours is really soothing!! nice one!