Tuesday, November 25, 2008

नहीं चाहिए मुझे !!!

नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !

झूठे
रिश्तो में जीती नाग़बार जिंदगी...
टुकडो में बिखरी ये बेशुमार जिंदगी...
अपनों में सिमटी ये बेकरार जिंदगी...

नहीं
चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !

ढलती शाम के साथ पनपती जिंदगी...
उगती सुबह के साथ थमती जिंदगी...
बे-समय बनती और मिटती जिंदगी...

नहीं
चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !

मयकदों में उलझी पड़ी बेहोश जिंदगी...
खरीदी हुई बाँहों में पड़ी मदहोश जिंदगी...
बाज़ार-ऐ-जमीर में खड़ी खामोश जिंदगी...

नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !

ख्वाइशों
को जूनून में ढालती जिंदगी...
ख़ुद को बस खुदी से संभालती जिंदगी...
तन्हाईओं में डर के ये भागती जिंदगी...

नहीं
चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !

हकीकत
जानकर भी अनजान जिंदगी...
सरहदे जीतने को ये लहूलुहान जिंदगी...
जीतकर भी उसी जीत पे हैरान जिंदगी...

नहीं
चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !

भावार्थ...

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।

ढलती शाम के साथ पनपती जिंदगी...
उगती सुबह के साथ थमती जिंदगी...
बे-समय बनती और मिटती जिंदगी...

SILKY said...

well said dear

its a gud one....liked it very much.