नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !
झूठे रिश्तो में जीती नाग़बार जिंदगी...
टुकडो में बिखरी ये बेशुमार जिंदगी...
अपनों में सिमटी ये बेकरार जिंदगी...
नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !
ढलती शाम के साथ पनपती जिंदगी...
उगती सुबह के साथ थमती जिंदगी...
बे-समय बनती और मिटती जिंदगी...
नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !
मयकदों में उलझी पड़ी बेहोश जिंदगी...
खरीदी हुई बाँहों में पड़ी मदहोश जिंदगी...
बाज़ार-ऐ-जमीर में खड़ी खामोश जिंदगी...
नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !
ख्वाइशों को जूनून में ढालती जिंदगी...
ख़ुद को बस खुदी से संभालती जिंदगी...
तन्हाईओं में डर के ये भागती जिंदगी...
नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !
हकीकत जानकर भी अनजान जिंदगी...
सरहदे जीतने को ये लहूलुहान जिंदगी...
जीतकर भी उसी जीत पे हैरान जिंदगी...
नहीं चाहिए मुझे ! नहीं चाहिए मुझे !
भावार्थ...
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, November 25, 2008
नहीं चाहिए मुझे !!!
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2 comments:
बहुत बढिया रचना है।
ढलती शाम के साथ पनपती जिंदगी...
उगती सुबह के साथ थमती जिंदगी...
बे-समय बनती और मिटती जिंदगी...
well said dear
its a gud one....liked it very much.
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