कुछ एक और नाकामी मिले तो सुकून आए...
रास्तो को मेरे न मंजिल मिले तो सुकून आए...
हौसले मेरे डगमगाए तो हैं पर अभी टूटे नहीं हैं...
पत्थर से ये तिनका बन बिखर जाए तो सुकून आए...
किस्मत सेहरा में आई तो तपिश ले कर आई ...
गर्मी नसों में लहू बन उतर जाए तो सुकून आए...
चलते चलते न जाने कौन सा मंजर मिलेगा मुझे...
लडखडाते कदम अगर चल न पायें तो सुकून आए...
मेरी धुंधले वजूद के होने के गवाह हैं मेरे अपने...
पहचान उनके जेहेन से उतर जाए तो सुकून आए...
सिसकियों के सावन जो बहे मेरी तन्हाईओं में...
संग-ऐ-सहेरा मेरी वही आँखें हो जाए तो सुकून आए...
किसी न क्या खूब कहा है आदत है जिए जाना भी...
अब तो बस ये बुरी लत छूट जाए तो सुकून आए...
भावार्थ...
1 comment:
kya baat hai! chha gaye ab isse jyada negative kya ho sakta hai
कुछ एक और नाकामी मिले तो सुकून आए...
रास्तो को मेरे न मंजिल मिले तो सुकून आए...
I think this is height of pessimism..
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