तेरे इंतज़ार में रात भर खाबो के साथ खेलती रही।
खामोश रात की तन्हाई में मैं तेरी राह देखती रही।
पत्थर सी बन गई आँखें अजनबी को सोचती रही।
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
सुबह मुझे तेरे प्यार की किरने उढाने आई।
धुपहर मुझे नीद के खिलोने से बहलाने आई।
नटखट शाम भी तेरा नाम से मुझे चिढाने आई।
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
फिजाओ के पंक्षी उड़ उड़ कर सामने जाते रहे।
हवाओ के नर्म हाथ मेरी गेसुओं को सहलाते रहे।
तेरे ख्याल मुझे पतंग की तरह ले कर जाते रहे।
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
अश्क मेरे बह कर सेहरा दिल की प्यास बुझाते रहे।
आँखों के काजल बह कर मेरे गालो तक आते रहे।
तेरी हिज्र के ख्याल सिसकियाँ होठो तक लाते रहे।
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
भावार्थ...
1 comment:
अश्क मेरे बह कर सेहरा दिल की प्यास बुझाते रहे।
आँखों के काजल बह कर मेरे गालो तक आते रहे।
तेरी हिज्र के ख्याल सिसकियाँ होठो तक लाते रहे।
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
पर तू नहीं आया अजनबी !!!
bahut sunder likha hai
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