न जाने कितने ही संग भीड़ ने गिराए मुझपे ।
तन्हाई में अक्सर आईने से भी मैं डरने लगा हूँ।
खौफ मेरी रूह में है कॉम-ऐ-इंतेशार से इतना।
अब तो हिचकियों , डकारो से भी डरने लगा हूँ।
लहू का सावन था वो बस चुका है मेरे जेहेन में।
सुर्ख लाल सी हर एक चीज़ से में डरने लगा हूँ।
भजन और अजान पढने वाले कत्ल पे आमदा हैं।
अब खुदा क्या , शिव क्या इन नामो से डरने लगा हूँ।
भावार्थ...
1 comment:
you need to remove that khauff from your soul.it will be good for you .
but the way you have brought the depth of fear in you you is good..
Post a Comment