एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Wednesday, October 22, 2008
क्या कहूँ , कैसे कहूँ ,या यूँ कहें की क्यूँ कहूँ? ये सवाल बार-बार मेरी सोच के दायरे में मंडराते हैं, और कभी कभी बहुत बड़े बन जाते हैं मेरे जवाबों की लम्बाई से कहीं ऊँचे कहीं आगे........
No comments:
Post a Comment