मुस्कुरा ऐ ज़मीन-ऐ-तीरह-ओ-तार...
सर उठा ऐ दबी हुई मखलूक...
देख वो मगहर्बी उफक के करीब...
आंधियां पेच-ओ-ताब खाने लगीं...
और पुराने कमार-खाने में ...
कुहनाह शातिर बहम उलझाने लगे...
कोई तेरी तरफ़ नहीं निगरान...
ये गिरां-बार सर्द जंजीरें...
जंग-खुर्दा हैं, आहनी ही सही...
आज मौक़ा’ है टूट सकती हैं...
फुर्सत-ऐ-याक नफस ग़नीमत है...
सर उठा ऐ दबी हुई मखलूक...
साहिर लुधियानवी...
उर्दू:
तीरह-ओ-तर्क - Dark
मखलूक- people
मगहर्बी-western
उफक-horizon
पेच-ओ-ताब-Restlesnes,anxiety
कमार-खाने-Gamble house
कुहनाह-Old ancient
गिरां-बार-Heavy
जंग-खुर्दा-Rusted
आहनी-Iron
फुर्सत-ऐ-याक नफस-a free moment
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Wednesday, October 22, 2008
सर उठा ऐ दबी हुई मखलूक... !!!
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1 comment:
kya zabardast urdu hai yaar had to look for meanings aft every line .......bade log badi baatein!!!
kher thanx ise post karne ka .i liked it.
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