Friday, October 17, 2008

इरादों को जब तेरे हौसलों के रास्ते मिलते हैं।

इरादों को जब तेरे हौसलों के रास्ते मिलते हैं।
मंजिल के ये फलक जमीं पे आके मिलते हैं।

मुट्ठी भर है आसमां जो तू चले अगर।
बालिश्त भर है समंदर जो तू नापले अगर।
एक राह लेले तू कारवां ख़ुद बनने लगते हैं।
इरादों को जब होसलों के रास्ते मिलते हैं।

इरादों को जब तेरे होसलों के रास्ते मिलते हैं।
मंजिल के ये फलक जमीं पे आके मिलते हैं।

हर कदम जो तेरा बढे तेरे दिलकी आवाज़ हो।
मंजिल पर ही रुके तेरे खाब की वो परवाज़ हो।
चीरकर मझधार कोही तो साहिल मिलते हैं।
इरादों को जब तेरे होसलों के रास्ते मिलते हैं।

इरादी को जब तेरे होसलों के रास्ते मिलते हैं।
मंजिल के ये फलक जमीं पे आके मिलते हैं।

ये अंजान राहे कहीं तुझको गुमराह न कर पाये।
गर्दिशों मैं हो जो तारे अगर ये होसले न मुरझाये।
अंजाम के क्षितिज पार ही नए आगाज़ मिलते हैं।
इरादों को जब तेरे होसलों के रास्ते मिलते हैं।

इरादों को जब तेरे होसलों के रास्ते मिलते हैं।
मंजिल के ये फलक जमीं पे आके मिलते हैं।

भावार्थ...

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