कुछ ख़ास है कुछ पास है।
कुछ अजनबी एहसास है।
कुछ दूरिया नजदीकियां।
कुछ हस पड़ी तन्हायिया।
क्या ये खुमार है क्या ऐतबार है।
शायद ये प्यार है प्यार है शायद।
क्या ये बहार है क्या इंतज़ार है।
शायद ये प्यार है प्यार है शायद।
कुछ साज़ है जागे से हैं जो सो।
अल्फाज़ है छुप से नशे में खो।
नज़रे ही समझे ये गुफ्तगू सारी।
कोई आरजू ने ली अंगडाई प्यारी।
कहना ही क्या तेरा दखल न हो कोई।
दिल को दिखा दिल की शकल का कोई।
दिल से थी मेरी इक शर्त ये ऐसी।
लगी जीत सी मुझको ये हार है कैसी।
ये कैसा बुखार है क्यों बेकरार है।
शायद ये प्यार है प्यार है ये शायद।
जादू सवार है न इखित्यार है शायद।
शायद ये प्यार है प्यार है ये शायद।
कुछ ख़ास है कुछ पास है।
कुछ अजनबी एहसास है।
कुछ दूरिया नजदीकियां।
कुछ हस पड़ी तन्हायिया।
इरफान सिद्दीकी...
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Wednesday, October 15, 2008
कुछ ख़ास है कुछ पास है
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