खामोशी को आज शोर ने उजाड़ फेंका है...
बारूद उड़ उड़ के हवा को रोंद रहा है...
बाज़ार भीड़ से घुटन में दम खो रहे हैं...
राम बनवास से आज लौट आए शायद....
अंधेरे को उजाला सुकून से जीने नहीं देता है...
जानवर उठ कर आदमी के हैवान को देखते हैं...
भूखो को सजी मिठाइयां बदनसीबी याद दिलाती हैं...
राम बनवास से आज लौट आए शायद...
आसमान को आग ने झुलसा दिया है...
धरती धमाको से सुन्न सी पड़ी हुई है....
शाम और रात ने कान बंद केर लिए हैं...
राम बनवास से आज लौट आए शायद...
रावण और उसके इरादे अब भी जिन्दा है...
पता नहीं कौन से असुर को मार के लौटे हैं....
अँधेरा लोगो के दिलो में आज भी गहरा हैं...
राम बनवास से आज लौट आए शायद....
तभी लोग दिवाली मना रहे हैं....
भावार्थ...
2 comments:
firstly i wish you a very happy diwali!!
yes you are true my friend when you say
रावण और उसके इरादे अब भी जिन्दा है...but there is one more thing the no. of Ravan has increased in this Kalyug..and Ram is no where .. शायद....!!
well said ..!
ram ji abhi nahi laute hai aur kai diwaliyaan lagegengi ..............
gud poetry newayz.
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