Sunday, October 19, 2008

मिलन !!!

मेरे सुलगते जज्बातों को बुझा दो ....
अपने आगोश के समंदर में समा लो...
तन्हाई साहिल पे बिखरी हुई है...
ख़ुद की चाहत की लहरों में बहा दो...

जेहेन का तूफान मेरा थमता नहीं...
इन खयालो को अंजाम मिलता नहीं...
ये इन्तहा है उसकी तमन्ना की...
साँसों में किसीका निशाँ मिलता नहीं...

रात शाम के ढलने का इंतज़ार करती है...
सुबह फ़िर न होने का ख्याल रखती है...
ख़ुद को एक अनजान फलक पे ले आओ...
बारिश ख़ुदको जलाने की ख्वाइश रखती है...

दो अक्सों को आख़िर एक सांचे में ढलना है...
तन्हा तमन्नाओ को हवाओ सा मचलना है...
दूरियां अपने होने का निशाँ ढूढती रह जाए...
आ जाओ तुमको मुझसे कुछ ऐसे मिलना है...

भावार्थ...

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