इस रिश्ते का कोई नाम नहीं।
जिस रिश्ते को में जीता हूँ।
कुछ घंटे लम्हे बन जाते हैं।
उन लम्हों में सदियाँ जीता हूँ।
एक असर है उसकी बातो में।
जो बाँध के मुझको रखता है।
कुछ अदाओं का है सुरूर जुदा।
जो नशा सा बन कर बहता है।
डांट में उसकी प्यार है इतना।
गम ख़ुद ब ख़ुद मिट जाते हैं।
अंदाज़-ऐ-बयां भी कुछ ऐसा है।
दर्द छुईं-मुईं से सिमट जाते हैं।
अजीब सा है ये एहसास बड़ा।
न कह पाऊँ और न सह पाऊँ।
कुछ घुला घुला सा हूँ उसमें।
न थम पाऊँ और न बह पाऊँ।
भावार्थ...
2 comments:
very deep feelings can be felt!! nice one.!
Thanks a lot...
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