ये महलो ये तख्तो ये ताजो की दुनिया...
ये इंसान के दुश्मन समाजो की दुनिया...
ये दौलत के भूखे रिवाजो की दुनिया..
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है !!!
हर एक जिस्म घायल हर एक रूह प्यासी...
निगाहों में उलझन दिलों में उदासी....
यहाँ एक खिलौना है इंसान की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा परस्तो की बस्ती...
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती...
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो है !!!
जवानी भटकती है बदकार बनकर...
जवान जिस्म सजते हैं बाज़ार बनकर
यहाँ प्यार होता है व्यापार बनकर...
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है !!!
ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है...
वफ़ा कुछ नहीं दोस्ती कुछ नहीं है...
जहाँ प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है...
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...
जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया...
मेरे सामने से हटालो ये दुनिया
तुम्हारी है तो तुम्ही संभालो ये दुनिया...
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है....
साहिर लुधियानवी...
1 comment:
शानदार नज्म है। प्यासा फिल्म में इस का बेहतरीन उपयोग हुआ था। आप चाहते तो इसे पोडकास्ट कर सुनवा भी सकते थे।
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