काश मैं इक ऐसी नज़्म लिख पाऊँ जो।
सागर सी गहराई लिए किसी साहिल पे बैठी हो।
जैसे रात सी तन्हाई किसी विधवा ने सिमेटी हो।
जिसका हर पहलू पिघले हुए कांच से सिला हो।
जिसका सांचा ख़ुद के आईने मैं एकसार ढला हो।
काश मैं इए ऐसी नज़्म लिख पाऊँ जो।
अनगिनत खयालो को चंद अल्फाजो में कह दे।
जज्बातों के तूफ़ान को उसके आस्तां पे बह दे।
मेरी चाहत की गुजारिश को उसकी हाँ की मोहर दे दे।
पनपते रिश्तो के वजूद को अंजाम की ख़बर दे दे।
काश मैं इए ऐसी नज़्म लिख पाऊँ जो।
मेरी रूह की गर्मी से उस संगदिल को पिघला दे।
रोंधि आवाज़ की चीख से उसके जमीर को हिला दे।
कसक और चाक के निश्तर से उसके अश्क बहा दे।
पल में मेरे खाब और हकीकत के फासले मिटा दे।
काश में एक ऐसी नज़्म लिख पाऊँ जो।
करोडो को उनकी नींद से जागने पे मजबूर कर दे।
डूबने जा रहे कारवां को उस दलदल से दूर कर दे।
हकीकत पे पड़े परदे को कुछ एक पल को हटा दे।
इन डगमगाते रिश्तो की नाव को किनारे से लगा दे।
काश में एक ऐसी नज़्म लिख पाऊँ।
जिसका हर एक अल्फाज़ हजारो की आवाज़ बन जाए।
जो अधूरे आज की तस्वीर आने वाले कल को दिखलाये।
जो बीते कल के अफ़साने इक नए अंदाज़ में बुन लाये।
जो लोगो की जिंदगी से कुछ एक लम्हे फूलो से चुन लाये।
काश में एक ऐसी नज़्म लिख पाऊँ।
भावार्थ...
2 comments:
जिसका हर एक अल्फाज़ हजारो की आवाज़ बन जाए।
जो अधूरे आज की तस्वीर आने वाले कल को दिखलाये।
जो बीते कल के अफ़साने इक नए अंदाज़ में बुन लाये।
जो लोगो की जिंदगी से कुछ एक लम्हे फूलो से चुन लाये।
badhiyaa likhaa hai.
Thanks a lot Parmajeet Ji !!!
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