कश्ती का खामोश सफर है।
शाम भी है तन्हाई भी।
दूए किनारे पे बजती है।
लहरों की शाहनाही भी।
आज मुझे कुछ कहना है।
आज मुझे कुछ कहना है।
लेकिन यह शर्मीली निगाहें मुझको इज्ज़त दे तो कहूं।
यह मेरी बेताब उमंगे थोडी फुर्सत दे तो कुछ कहूं।
आज मुझे कुछ कहना है।
आज मुझे कुछ कहना है।
जो तुमको कहना है मेरे दिल की ही बात न हो।
जो हो मेरे खाबो की मंजिल है उसकी बात न हो।
कहते हुए डर सा लगता है कह कर बात न खो बैठूं।
यह जो जरा सा साथ मिला है यह भी साथ न खो बैठूं।
कब से तुम्हारे रस्ते में तुम्हारे फूल बिछाये बैठी हूँ।
कह भी चुको जो कहन है में आस लाफाये बैठी हूँ।
दिल ने दिल की बात समझ ली अब मुँह से क्या कहना है।
आज नहीं तो कल कह देंगे अब तो साथ ही रहना है।
कह भी चुको जो कहना है।
छोड़ो अब क्या कहना है।
साहिर लुधियानवी...
3 comments:
आभार।
आभार।
kishore kumar aur asha ji ya shayad shamshad begum ne yah gana gaya tha, mujhe poora gana padhne ko mila dhanyavaad
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