पुरानी आदत है उसकी...
मुझे बुला कर देर से आने की ...
मुझे रुला कर फिर मनाने की...
रूठ जाऊं तो काँधे पे सुलाने की...
पुरानी आदत है उसकी...
मेरे यकीं के लिए झूठी कसम खाने की..
मेरी नक़ल बना कर मुझे चिढाने की...
अजीब शक्लें बना कर मुझे हँसाने की...
पुरानी आदत है उसकी...
उसकी आदतें कब मेरी आदतें बन गयी..
उसकी यादें कब मेरी आयतें बन गयी...
उसकी चाहतें कब मेरी इनायतें बन गयी...
मुझे पता भी न चला...
कब साल पल बन गए...
मुझे बुद्धू बनाने की...
मुझे जीना सिखाने की...
पुरानी आदत है उसकी...
भावार्थ...
मुझे बुला कर देर से आने की ...
मुझे रुला कर फिर मनाने की...
रूठ जाऊं तो काँधे पे सुलाने की...
पुरानी आदत है उसकी...
मेरे यकीं के लिए झूठी कसम खाने की..
मेरी नक़ल बना कर मुझे चिढाने की...
अजीब शक्लें बना कर मुझे हँसाने की...
पुरानी आदत है उसकी...
उसकी आदतें कब मेरी आदतें बन गयी..
उसकी यादें कब मेरी आयतें बन गयी...
उसकी चाहतें कब मेरी इनायतें बन गयी...
मुझे पता भी न चला...
कब साल पल बन गए...
मुझे बुद्धू बनाने की...
मुझे जीना सिखाने की...
पुरानी आदत है उसकी...
भावार्थ...
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