Saturday, December 3, 2011

किस तरह से रोये... !!!

तुम से बिछुड़ के हम  किस किस तरह से रोये...
लोग समझ ना पाए इसलिए  हँसते हुए  रोये...

कोई सुन न पाए मेरे दर्द तेरे शहर के कूंचे पे...
दूर किसी खंडहर की दीवार से लग कर रोये...

मुझको मालूम था सब रोने का सबब पूछेंगे...
अपनों से कहीं दूर हम तन्हाई से लिपट कर रोये...

याद आती रही रुलाती रही होश में हमको...
मयखाने में बेसुध होकर रात भर नशे में रोये...

तुम से बिछुड़ के हम किस किस तरह से रोये...
लोग समझ ना पाए इसलिए हँसते हुए रोये...


भावार्थ... 

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