Wednesday, December 7, 2011

जाते जाते नज़र मिला गया वो...

बंद होठों से बोलना सिखा गया वो...
जाते जाते  नज़र मिला गया वो...

जाते जाते नज़र मिला गया वो...


ठहरा हुए  दिल-ए-समंदर में मेरे...
संग-ए-उल्फत  गिरा  गया वो...

जाते जाते नज़र मिला गया वो...

नूर-ए-इलाही की ख्हयिश थी ...
खायिश-ए-जिस्म जगा गया वो...

जाते जाते नज़र मिला गया वो...


गुना-भाग का हुनर था हममें...
इक शौक-ए- इश्क लगा  गया वो...

जाते जाते नज़र मिला गया वो...

सब को पढ़ता था किताब-ए-जेहेन...
बाब-ए-मोहब्बत सिखा गया वो...

जाते जाते नज़र मिला गया वो...


आज़ाद रूह थी 'भावार्थ' तेरी...
पैराहन-ए-इश्क उढ़ा गया वो...


जाते जाते नज़र मिला गया वो...



भावार्थ...

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