एक लफ्ज़ मोहब्बत का अदना ये फ़साना है...
सिमटे तो दिल-इ-आशिक फैले तो ज़माना है...
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं...
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है...
ये इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजे...
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है...
दिल संग-ए-मलामत का हर चन्द निशाना है...
दिल फिर भी मेरा दिल है दिल ही तो जमाना है...
आंसू तो बहुत से हैं आँखों में जिगर लेकिन...
गिर जाए वो मोती है रह जाए सो दाना है...
जिगर मुरादाबादी !!!
सिमटे तो दिल-इ-आशिक फैले तो ज़माना है...
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं...
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है...
ये इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजे...
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है...
दिल संग-ए-मलामत का हर चन्द निशाना है...
दिल फिर भी मेरा दिल है दिल ही तो जमाना है...
आंसू तो बहुत से हैं आँखों में जिगर लेकिन...
गिर जाए वो मोती है रह जाए सो दाना है...
जिगर मुरादाबादी !!!
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