जिस सिम्त भी देखूं नज़र आता है कि तुम हो...
ना जाने यहाँ कोई तुम सा है कि तुम ही...
ये खाब है खुशबू है कि झोंका है कि पल है...
ये धुंध है बादल है कि साया है कि तुम हो...
देखो ये किसी और की आँखें है कि मेरी...
देखूं ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो...
ये उम्र-ए-गुरेजा है कहीं ठहरे तो ये जानू...
हर सांस में मुझे लगता है कि तुम हो..
एक दर्द का फैला हुआ सेहरा है कि में हूँ...
एक मौज में आया हुआ दरिया हूँ कि तुम हो...
ए जाने फ़राज़ इतनी भी तौफिक किसे थी..
हमको गम-ए-हस्ती भी गवारा कि तुम हो...
अहमद फ़राज़ !!!
ना जाने यहाँ कोई तुम सा है कि तुम ही...
ये खाब है खुशबू है कि झोंका है कि पल है...
ये धुंध है बादल है कि साया है कि तुम हो...
देखो ये किसी और की आँखें है कि मेरी...
देखूं ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो...
ये उम्र-ए-गुरेजा है कहीं ठहरे तो ये जानू...
हर सांस में मुझे लगता है कि तुम हो..
एक दर्द का फैला हुआ सेहरा है कि में हूँ...
एक मौज में आया हुआ दरिया हूँ कि तुम हो...
ए जाने फ़राज़ इतनी भी तौफिक किसे थी..
हमको गम-ए-हस्ती भी गवारा कि तुम हो...
अहमद फ़राज़ !!!
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