Friday, December 2, 2011

उससे बिछुड़ के में यूँ घर आया...

उससे बिछुड़ के में यूँ घर आया...
आँख रो पड़ी और गला भर आया...
कह तो दिया उसे आखरी अलविदा...
सोचता हूँ आखिर मैं क्या कर आया...
उसने रोकने की नाकाम कोशिश की...
मगर में उसके दर से बस बढ़ आया...
कब तक बहते हुए पानी को रोकता...
में उसी बहाव के संग दूर तक बह आया...
उससे बिछुड़ के मैं यु घर आया...
आखं रो पड़ी और गला भर आया...

भावार्थ...

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