Saturday, December 3, 2011

मुझे तुम क्या कहते हो !!!

ये अलफ़ाज़ ये शेर या फिर जिनको तुम ग़ज़ल कहते हो..
मुझे नहीं मालूम इनको और तुम क्या क्या कहते हो...

मेरे आंसू, मेरी तन्हाई , मेरा दर्द लिए ये हर्फ़...
बूँद बूँद ही है जिनको तुम समंदर कहते हो...

वो किताब, उसमें सुर्ख फूल और वो मोर के पंख  ...
नज़्म हैं मेरी जिनको तोहफा-इ-मोहब्बत कहते हैं...

वो खाब, वो खयाल, वो तेरा खुमार जिंदगी में ...
उनमान है मेरे के जिनको तुम तसव्वुर कहते हो...

वो खुशबू, वो रंग, वो नशा जो बिखरा सा हुआ है...
स्याही है मेरी जिनको तुम सुरूर-ए-ग़ज़ल कहते हो...

ये नजाकत, ये हया, ये तेरी सादगी जो छुई है मैंने...
रूह-ए-शायरी है मेरी जिनको तुम अपनी अदा कहते हो...

एक तलाश, एक कैफियत, एक सोच जो तैरती रहती है...
मेरा जुनू है जिसको तुम मेरी राह-ए-मंजिल कहते हो...

ये आईना, ये परछाई, ये खुद सा होने का वहम...
मैं ही हूँ तुम में जिसे अक्स कहते हो, 'भावार्थ' कहते हो...

भावार्थ...

No comments: