तोड़कर अहद-इ-करम न आशना हो जायिए..
बंदा परवर जाईये अच्छा खफा हो जायिए...
राह में मिलिए कभी मुझ से तो अजरा-ए-सितम
होठ अपने काट के फ़ौरन जुदा हो जाईये..
जी में आता ही उस शोख-इ तगाफुल केश से..
अब न मिलिए फिर कभी और बेवफा हो जाईये...
हाय री बे-इख्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर..
उर सरापा नाज़ से क्यों कर खफा हो जाईये...
तोड़कर अहद-इ-करम न आशना हो जायिए..
बंदा परवर जाईये अच्छा खफा हो जायिए...
जोश मलीहाबादी !!!
बंदा परवर जाईये अच्छा खफा हो जायिए...
राह में मिलिए कभी मुझ से तो अजरा-ए-सितम
होठ अपने काट के फ़ौरन जुदा हो जाईये..
जी में आता ही उस शोख-इ तगाफुल केश से..
अब न मिलिए फिर कभी और बेवफा हो जाईये...
हाय री बे-इख्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर..
उर सरापा नाज़ से क्यों कर खफा हो जाईये...
तोड़कर अहद-इ-करम न आशना हो जायिए..
बंदा परवर जाईये अच्छा खफा हो जायिए...
जोश मलीहाबादी !!!
1 comment:
........जानदार शेर .....उम्दा ग़ज़ल
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