जो था पसंद हमें न वो काम मिला...
नापसंद था जो वो हमें तमाम मिला...
जिंदगी इस बे-इख्तियारी में रही ...
काम के आदमी को न काम का काम मिला...
कौम की चक्की में पिसते रहे हम ...
सजदे को न खुदा मिला न ही राम मिला...
राह-ए-इश्क पे निकल गए इतना...
न आगाज़ नसीब न ही अंजाम मिला...
जिंदगी से जिंदगी चुराती रही उम्र ...
उसकी बेवफाई का न कोई पैगाम मिला...
जो था पसंद हमें न वो काम मिला...
नापसंद था जो वो हमें तमाम मिला...
भावार्थ
नापसंद था जो वो हमें तमाम मिला...
जिंदगी इस बे-इख्तियारी में रही ...
काम के आदमी को न काम का काम मिला...
कौम की चक्की में पिसते रहे हम ...
सजदे को न खुदा मिला न ही राम मिला...
राह-ए-इश्क पे निकल गए इतना...
न आगाज़ नसीब न ही अंजाम मिला...
जिंदगी से जिंदगी चुराती रही उम्र ...
उसकी बेवफाई का न कोई पैगाम मिला...
जो था पसंद हमें न वो काम मिला...
नापसंद था जो वो हमें तमाम मिला...
भावार्थ
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