वो कौन सा सजर है तेरा जहाँ न इश्क बेशुमार हो ..
वो कौन सा मंजर है तेरा जहाँ न तेरा खुमार हो...
रात की बेसुध तन्हाई नर्म बाहों में कैद हो..
वो कौन सा पल है जिसमें न तेरा प्यार हो ...
आहट भी जहाँ दिल की सुनायी देने लगे...
वो कौन सा पहर है जब न तेरा इंतज़ार हो ...
उठ उठ कर बेसब्र तमन्ना मचली है मेरी...
वो कौन सा पहलू है जहाँ न तेरा इज़हार हो ...
कैद कर लो अपने ख्यालो में मुझे मेरी जाँ...
वो कौन सा खाब है जिसमें न तेरा इकरार हो...
वो कौन सा सजर है तेरा जहाँ न इश्क बेशुमार हो ..
वो कौन सा मंजर है तेरा जहाँ न तेरा खुमार हो...
भावार्थ
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