शायर-ए-फितरत हूँ में जब फ़िक्र फरमाता हूँ मैं...
रूह बन कर जर्रे जर्रे में समां जाता हूँ मैं...
आके तुम बिन इस तरह घबराता हूँ मैं..
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं...
तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तकाजा क्या जरूर ...
ले उठा जाता हूँ जालिम ले चल जाता हूँ मैं...
हाय री मजबूरियाँ करके मोहब्बत के लिए...
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं...
एक दिल है उअर तूफ़ान-ए-हवादिस ए जिगर...
एक शीशा है की हर पत्थर से टकराता हूँ मैं ..
जिगर मोरादाबादी !!!
रूह बन कर जर्रे जर्रे में समां जाता हूँ मैं...
आके तुम बिन इस तरह घबराता हूँ मैं..
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं...
तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तकाजा क्या जरूर ...
ले उठा जाता हूँ जालिम ले चल जाता हूँ मैं...
हाय री मजबूरियाँ करके मोहब्बत के लिए...
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं...
एक दिल है उअर तूफ़ान-ए-हवादिस ए जिगर...
एक शीशा है की हर पत्थर से टकराता हूँ मैं ..
जिगर मोरादाबादी !!!
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