अब अक्सर चुप चुप रहे हम...
यु ही कहो लब खोले हैं...
पहले फ़िराक को देखा होता....
अब तो अभूत कम बोले हैं...
दिन में गम को देखने वालो..
अपने अपने हारों का...
जाओ न तुम इन खुश्क आँखों पे...
हम रातों को रोले हैं...
पहले फ़िराक को देखा होता....
अब तो अभूत कम बोले हैं...
गम का फ़साना सुनने वालो..
आखिर शब् आराम करो...
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे ...
हम भी जरा अब सो लेते हैं...
पहले फिराक देखा होता...
अब तो बहुत कम बोले हैं...
फ़िराक गोरखपुरी !!!
यु ही कहो लब खोले हैं...
पहले फ़िराक को देखा होता....
अब तो अभूत कम बोले हैं...
दिन में गम को देखने वालो..
अपने अपने हारों का...
जाओ न तुम इन खुश्क आँखों पे...
हम रातों को रोले हैं...
पहले फ़िराक को देखा होता....
अब तो अभूत कम बोले हैं...
गम का फ़साना सुनने वालो..
आखिर शब् आराम करो...
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे ...
हम भी जरा अब सो लेते हैं...
पहले फिराक देखा होता...
अब तो बहुत कम बोले हैं...
फ़िराक गोरखपुरी !!!
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