फिराक एक नयी सूरत निकल तो सकती है...
वो आँख कहती है दुनिया बदल तो सकती है...
कड़े हैं कोस बहुत मंजिल-ए- मोहब्बत के..
मिले न छाव मगर धुप ढल तो सकती है...
सुना है बर्फ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के...
कुछ आंच पा के चांदी पिघल तो सकती है...
फ़िराक गोरखपुरी !!!
वो आँख कहती है दुनिया बदल तो सकती है...
कड़े हैं कोस बहुत मंजिल-ए- मोहब्बत के..
मिले न छाव मगर धुप ढल तो सकती है...
सुना है बर्फ के टुकड़े हैं दिल हसीनों के...
कुछ आंच पा के चांदी पिघल तो सकती है...
फ़िराक गोरखपुरी !!!
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