Tuesday, November 22, 2011

फ़िराक गोरखपुरी

फिराक एक नयी सूरत निकल तो सकती है...
वो आँख कहती है दुनिया बदल तो सकती है...
कड़े हैं कोस बहुत मंजिल-ए- मोहब्बत के..
मिले न छाव मगर धुप ढल तो सकती है...
सुना है बर्फ के टुकड़े हैं दिल  हसीनों के...
कुछ आंच पा के चांदी पिघल तो सकती है...

फ़िराक गोरखपुरी !!!

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