उसने बेवफा क्या कहा मुझसे।
में अपनी वाफाओ पे रोने लगा।
तान्हे आ आ कर चुभने लगे।
मेरा मिजाज ख़ुद बिगड़ने लगा।
उसकी नजरो में जो देखा मैंने।
अपने आप को संभल न पाया।
लोगो को क्या समझाऊं।
क्यों में मरासिम बना न पाया।
मजबूरियां जहर उगलने लगी।
मेरी साँसे भी फिर उखड़ने लगी।
में उसे ज्यों ही भूलने लगा।
उसकी यादो का दर्द बढ़ने लगा।
मैंने उसके चेहरे से ज्यों रुख मोडा।
मेरा वजूद ने मेरा साथ छोडा।
उसका अक्स मेरी आंखो में था।
और मेरा अक्स मौत की बाँहों में था...
भावार्थ...
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, April 29, 2008
और मेरा अक्स मौत की बाँहों में था......!!!
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