Thursday, April 3, 2008

हर बार गठरी खोलता हूँ !!!- त्रिवेणी

में नाम लिखता रहा और वो उसको मिटाता रहा।
वो और में अपनी अपनी-२ आदत पे कायम रहे।

में और ये समुंदर दोनों ही गम से भरे हैं.....

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ये हवा जो आती है और चली जाती है खिड़कियों से ।
इसके ठहरने की उम्मीद भी नहीं रखता में यू तो।

में खफा हूँ ये मेरे सनम सी बनती जा रही है .....

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वो मेरा नाम लिख रुमाल, वो ऊन का हाथ से बना स्वेटर।
वो कुछ लिखे ख़त, वो चूड़ी का जोडा और वही तेरी शौल।

हर बार गठरी खोलता हूँ, रोता हूँ और फिर बंद कर देता हूँ।

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भावार्थ...

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