हर तरफ़ एक अजीब सी फिजा है।
न गर्मी, न सर्दी, न बारिश।
बस एक संजीदा सा एहसास साँसों का।
हर तरफ़ शोर मगर मैंने तन्हाई ओढ़ी है।
हर तरफ़ ग़मगीन चेहरे पर मैंने खुशी ओढ़ी है।
लोगो में कोई कमी नहीं नज़र आती।
हर शक्ल में नूर जैसे जगमगाया हो।
हर तरफ़ मेरे दुनिया सोती है।
मेरी हर परवाज ख्वाबो की होती है।
मेरी हर चाहत छोटी, और खुशी बड़ी है।
जो मुझे चाहिए हर जर्रे में बसी है।
लोगो की रफ्तार पे हसी आती है।
न जाने क्यों जिंदगी बुढापा चाहती है।
घड़ी की टिक टिक सबको डरती है।
मेरे आगोश में रूह की दस्तक आती है।
कुछ पाने का ख्वाब मुझे गुदगुदाता है।
मैं खो जाना चाहता हूँ जो भी मैंने पाया है।
लोग समेटने में लगे हैं और में बिखेरने में।
फकीरी भी क्या वाकया है !!!
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