में आज एक खुश इंसान को ढूढने निकला।
पर चमकती दुनिया का सच बड़ा कड़वा निकला।
घर से निकला तो रिक्शे वाला टकरा गया।
मैंने अपना अलाप उसी से शुरू किया।
क्यों भयिया आप बड़े खुश हो।
अपनी धूम में तुम तो जैसे गम हो।
बोला भाई, उधार का रिक्शा है, उधार की खुशी।
दो जून की रोटी भी नहीं मिलती किस बात की खुशी।
उसको ५ रूपये मैंने धीमे से थमाए।
खुश इंसान को ढूढने को मैंने कदम बढाये।
ये सूट बूट में टाई लगाये साहब बड़े खुश हैं।
मैंने अपना परिचय उनको करव्या।
अपनी शोद का उनमान मैंने उनको बताया।
वो बोला ये सूट-बूट तो दिखावा है।
सालो से मैंने गुलामी का जीवन बिताया है।
कहने को में बड़ी कम्पनी में कार्यरत हूँ।
पर चोटी सी खशी के लिए में सालो से प्रयासरत हूँ।
में निराश होकर इन डाक्टर से जा मिला।
उनके गौर-वर्ण पर खुशी ढूढने निकला।
आप बड़े खुश है डाक्टर साहिब सेवा से।
आपको तो पुण्य इतना मिलगा समाज सेवा से।
डाक्टर झल्लाया बोला १६ घंटे काम करता हूँ।
उसके बाद भी लोगो का उगला गुसा सहता हूँ।
जब अपनों के लिए समय न हो तो क्या जीना।
खुशी तो दूर की बात है सुकून का मिल जाए जीना।
में आज एक खुश इंसान को ढूढने निकला।
पर चमकती दुनिया का सच बड़ा कड़वा निकला।
भावार्थ...
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Sunday, April 20, 2008
में आज एक खुश इंसान को ढूढने निकला।
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