उसने दो पुराने गीत जब दिल से गाये थे ...
तब कहीं जाके कुछ सिक्के आए थे...
आंख होती तो शायद शक्ल दिख जाती...
सपने उसने जो अंधेरे में सजाये थे...
मुस्कुरा पड़ता है लोगो की बात सुन कर...
भिखारी के आगे उसने हाथ बढाये थे....
कोसता था खुदा को वो उसका बचपन था...
फज़ल है हाथ पाव उसने साजे बनाये थे...
रात उसकी सन्नाटे से और दिन शोर से है...
दो कान उसने ऐसे आँख जैसे बनाये थे...
रेल की पटरियां तय करता चला गया ...
उसके कदमो ने मंजिल के रास्ते पाये थे...
भावार्थ...
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