Monday, April 13, 2009

आरोप !!!

खून में जब तलब बस जाती है न ...
दिमाग पर इंसा के काबू नहीं रहता...
नसों में बस ये जूनून बहता है ...
इंसान फ़िर वो इंसान नहीं रहता...
पिघला हुआ कांच जब लबो को छूता है...
जिंदगी को होश-ओ-हवास नहीं रहता....

तुम पूछती हो कैसा हूँ...

मौत का सफर एक लम्हे का होता है...
आदमी जिंदगी भर डरता है उससे...
खौफनाक कुछ है तो ये तन्हाई है ...
जिन्दा हो कर भी मुर्दा सा है उससे...


कहाँ ले आई जिंदगी मुझे...

इतनी कसक है इसको मेरे वजूद से...
सूखे दरिया में डुबाने का ख़याल रखती है....
बिखर जाने का मेरे इसको कहाँ गम...
ख़ुद से जुदा करने का ख्याल रखती है....

होश में नहीं रहता में आज कल ...
बेहोश दुनिया नशे में कहती है...

खून में जब तलब बस जाती है न ...


भावार्थ...

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