Saturday, April 4, 2009

उठो !!!

सर पे है दिन, धुप चिल्मिला रही ,रात अभी तू सो रही...
जुल्म है बुलंद, हम हुए अपंग, आवाज़ अभी है खो रही...

बुझे हो तुम, गिरे हो तुम , तुम धड हो सर कटे हुए...
उखड़े हो तुम, उजडे हो तुम, इंसान हो तुम बस लुटे हुए...

सारे तंत्र हुए ध्वस्त, संसद हुआ है पस्त, नाट्य-तंत्र है बचा...
चूहा भी कुतर चुका,गीदड़ भी गुज़र चुका, कुक्कुर-मन्त्र है बचा...

होली है तो, तू रंग छोड़ ,तू अब क्रान्ति की राख मल...
गलियाँ छोड़, रंग रलियाँ छोड़ तू अब आवाम के साथ चल...

भावार्थ

3 comments:

Anil Kumar said...

अहा! भावार्थ इतना भारी हो चुका कि लिखा ही नहीं जा सका! बहुत खूब!

Ajay Kumar Singh said...

thnx anil...

Anonymous said...

bahut dino ke baad ek shashakt kranti ki guhar lagane aur jagane vali poetry padhne ko mili
keep it up !!!