एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, April 14, 2009
नफरत !!!
पान की पीक की तरह ... लोग गुस्से को क्यों थूक नहीं देते... पाल लेते हैं उसको सीने में ... महबूबा की तरह... फ़िर उनको उसकी लत लग जाती है... और उनकी नफरत जब कभी... सहन नहीं होती उगल पड़ती है... कभी हिंदू पे तो कभी मुसलमा पे...
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